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User:Edushuv/sandbox

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मृदा बकमैन एवं ब्रैडी के शब्‍दों में, मृदा वह प्राकृतिक पिण्‍ड है, जो विच्‍छेपित एवं अपक्षयित खनिजों एवं कार्बनिक पदार्थों के विगलन से निर्मित पदार्थों के परिवर्तनशील मिश्रण से परिच्‍छेदिका के रूप में संश्‍लेषित होती है।  यह पृ‍थ्‍वी को पतले आवरण के रूप में ढ़के रहती है।  जल और वायु की उपयुक्‍त मात्रा के सम्मिश्रण से पौधे को यांत्रिक अवलम्‍ब और आंशिक अजीविका प्रदान करती है।  मृदाजनन एक जटिल एवं निरंतर होने वाली प्रक्रिया है।  पैतृक शैलें, जलवायु, वनस्‍पति, भूमिगत जल एवं सूक्ष्‍म जीव सहित अनेक कारक मिट्टी की प्रकृति को निर्धारित करते हैं।  पैतृक शैलें मिट्टी को आधारभूत खनिज तथा पोषक तत्‍व प्रदान करते हैं, जबक‍ि जलवायु मिट्टी के निर्माण में रासायनिक तथा सूक्ष्‍म जैविक क्रियाओं को निर्धारित करती है। वनस्‍पति मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा निर्धारित करने में निश्‍चित भूमिका अदा करती है। वस्‍तुत: मिट्टी, जलवायु एवं वनस्‍पति में परस्‍पर घनिष्‍ट संबंध है।  स्‍थानीय उच्‍चावच तथा जलीय दशाएँ मिट्टी के गठन, pH मान आदि विशेषताओं को निर्धारित करती है। सूक्ष्‍म जीव अपक्षयित पदार्थ का वियोजन करते हैं।  जलवायु मृदाजनन के विभिन्‍न प्रक्रमों, जैसे – लेटरीकरण, पाइजोलीकरण, कैल्‍सीकरण तथा पीटरचना को सक्रिय बनाने में सबसे महत्‍वपूर्ण कारक है। भारत उष्‍ण तथा उपोष्‍ण कटिबन्‍ध में स्थित है जहां लेटेराइटी भवन एक प्रभावी प्रक्रम है।  वर्षा ऋतु के दौरान मूसलाधार वर्षा प्रायद्वीपीय पठार की मिट्टीयों में उच्‍च स्‍तरीय निक्षालन क्रिया को प्रेरित करती है। उत्‍तर पश्चिम के शुष्‍क तथा अर्ध्‍द शुष्‍क प्रदेशों में वाष्‍पीकरण की उच्‍च दर मिट्टीयों में केशिका क्रिया को प्रेरित करती है‍ जिससे मिट्टी की ऊपरी पर‍तों में कैल्शियम एकत्रित हो जाता है।  देश के अधिकांश भाग ( विशाल मैदान, तटीय क्षेत्रों एवं दक्‍कन ) में अकटिबंधीय मिट्टीयां मिलती हैं जिनका निर्माण उनके स्‍थान पर नहीं हुआ है। ये मिट्टीयां बाह्यजात प्रक्रमों से निर्मित हुई हैं। कांप की मिट्टीयां नदियों द्वारा लाये गये अपरदित पदार्थ से निर्मित हैं, जबकि दक्‍कन की लावा मिट्टीयां ज्‍वालामुखी शैलों के विखण्‍डन से बनी हैं।  मृदा के संगठन में निम्‍नलिखित पदार्थ भाग लेते हैं  ह्यूमस अथवा कार्बनिक पदार्थ – लगभग 5 से 10%  खनिज पदार्थ – लगभग 40 से 45%  इसके अलावा मृदा जीव व मृदा अभिक्रिया भी मृदा संगठन में भाग लेती है।  मृदा-जल – लगभग 25%  मृदा-वायु – लगभग 25%

   सभी प्रकार की मृदाओं में कार्बनिक पदार्थ कम या अधिक मात्रा में प्राय: कलिलीय पदार्थ के रुप में पाये जाते हैं। ये मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। उष्‍णकटिबंधीय मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम होती है जबकि पीट-मृदा में कार्बनिक पदा‍र्थों की मात्रा 100% तक हो सकती है। किसी भी मृदा में पाये जाने वाले सभी विच्‍छेपित कार्बनिक पदार्थों को ह्यूमस कहते हैं। ह्यूमस का निर्माण विभिन्‍न पादप एवं जंतु अवशिष्‍टों के विच्‍छेदन द्वारा होता है। यह विच्‍छेदन मृदा में पाये जाने वाले कवक एवं जीवाणु आदि करते हैं।  
   खनिज पदार्थ मृदा का सबसे महत्‍वपूर्ण एवं अधिक मात्रा में पाया जाने वाला अवयव है। ये मृदा अंश में दो प्रकार के होते हैं। प्राथमिक खनिज एवं द्वितीयक खनिज। प्राथमिक खनिजों में- क्‍वार्ट्ज, प्‍लेजियोक्‍लेज, मास्‍कोवाइट, बायोटाइट, आर्थोक्‍लेज, हार्नब्‍लेण्‍डे, एवं औगाइट होते हैं। द्वितीयक खनिज जिनका निर्माण प्राथमिक खनिजों से होता है, इस प्रकार है। यथा – एपेटाइट, कैल्सिाइट, डोलोमाइट, जिप्‍सम, लिमोनाइट, हीमेटाइट एवं केओलिनाइट आदि होते हैं।       
   किसी भी भूमि की खाड़ी काट जिसमें मृदा के विभिन्‍न संस्‍तर दिखलाई पड़ते हैं, मृदा परिच्‍छेदिका कहलाती है। इन विभिन्‍न संस्‍तरों की मोटाई, रचना व गुण भी भिन्‍न – भिन्‍न होते हैं। एक सामान्‍य मृदा-परिच्‍छेदिका में A, B, C एवं D नाम‍क चार संस्‍तर होती है। प्रथम संस्‍तर को उपरी मृदा कह‍ते है। यह संस्‍तर उपजाऊ होती है। पौधो की अधिकांश जड़ें इसी संस्‍तर में फैली होती हैं। इस संस्‍तर को पांच उपभागो में बांटा गया है। B संस्‍तर को अधोमृदा कहते हैं। C संस्‍तर में कैल्सियम कार्बोनेट एवं सल्‍फेट के लवणों का जमाव पाया जाता है। अंतिम D संस्‍तर में जैविक क्रियायें नहीं होती हैं और न ही पौधों की जड़ें वहाँ तक पहुँच पाती हैं। 
   मृदा खनिज अंश विभिन्‍न प्रकार के कणों के रूप में पाया जाता है। मृदाओं में निम्‍नलिखित आकार एवं व्‍यास के मृदा कण होते हैं –यथा-

1. बजरी : 5.000 मिमी. से अधिक व्‍यास वाले कण। 2. बारीक ब‍जरी : 2.000 मिमी. से 5.000‍ मिमी. तक व्‍यास वाले कण। 3. मोटी बालू : 0.2000 मि‍मी. से 2.000 मि‍मी. तक व्‍यास वाले कण। 4. बारीक बालू : 0.020 मिमी. से 0.200 मिमी. तक व्‍यास वाले कण। 5. गाद : 0.002 मिमी. से 0.020 मिमी. तक व्‍यास वाले कण। 6. चिकनी मिट्टी : 0.002 मिमी. से कम व्‍यास वाले कण। मृदाओं में उपरोक्‍त कण विभिन्‍न अनुपात में पाये जाते हैं। इन कणों के व्‍यास एवं अनुपात के आधार पर भारत में मुख्‍य रूप से निम्‍नलिखित प्रकार की मृदायें पाई जाती है- (a) बलुई मृदा (b) गाद मृदा (c) चिकनी मृदा (d) दोमट मृदा (e) चूना मृदा, बलुई दोमट आदि।

   मृदा अभिक्रिया उसके अम्‍लीय या क्षारीय प्रकृति पर निर्भर करती है। जिस मृदा में हाइड्रोजन आयनों की मात्रा अधिक होती है, उसे अम्‍लीय मृदा कहते हैं। जिस मृदा में K व Na आदि ऋणायनों की मात्रा अधिक होती है उसे क्षारीय मृदा कहते हैं। अम्‍लीय मृदा में अम्‍लीय गुण व क्रियायें व क्षारीय मृदा में क्षारीय गुण व क्रियायें पाई जाती हैं। मृदा अभिक्रिया pH में नापी जाती है। उदासीन मृदा में pH का मान 7.0 होता है। अम्‍लीय मृदा में इसका मान 7.0 से कम तथा क्षारीय मृदा में 7.0 से ज्‍यादा होता है। पौधों की वृध्दि सामान्‍यत: pH 6.0 से pH 7.5 के मध्‍य होती है। इसी pH के रेन्‍ज में पौधे अपनी सारी क्रियायें करते हैं। अधिक अम्‍लीय या क्षारीय मृदा पौधों के लिए हानिकारक होती है।